सूरजगढ़ निशान :-
विक्रम सम्वत 1705 (सन् 1648 ) में राजस्थान के सीकर जिले के खंडेला कस्बे के श्री तुलछाराम जी इंदौरिया ने खंडेला से खाटूश्याम जी तक एक ध्वजा (निशान) के साथ पदयात्रा की थी। भक्तशिरोमणि श्री तुलछाराम जी इंदौरिया के द्वारा की गई यह 'निशान यात्रा' श्याम-भक्ति के इतिहास में 'सूरजगढ़ निशान यात्रा' के नाम से स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हुई। श्री श्याम बाबा को अर्पित किये जाने वाले निशान में सूरजगढ़ निशान सबसे प्राचीन और सर्वाधिक महत्त्व वाला निशान है। इंदौरिया परिवार के मुकुटमणि भक्तशिरोमणि श्री तुलछाराम जी इंदौरिया के द्वारा प्रारम्भ की गई यह दिव्य सूरजगढ़ निशान यात्रा आज भी उनकी भक्ति और तपस्या के प्रभाव से प्रतिवर्ष हजारों श्याम भक्तों को श्याम-भक्ति का सुधा रस पान कराती हुई अनवरत रूप से जारी है।
श्री श्याम प्रभु की मान्यता :-
राजस्थान की इस मरुभूमि को भगवान् ने समय-समय पर अपने प्राण प्यारे भक्तों को भेज कर भक्ति-रस से सिंचित किया है। इसी पुण्यधरा के शेखावाटी अंचल के सीकर जिले में खंडेला कस्बे के समीप स्थित ग्राम सांठावास में लगभग 1685 विक्रम सम्वत (सन् 1628) में इन्दौरिया परिवार में श्री तुलछाराम जी के रूप में श्याम-भक्ति का सूर्योदय हुआ। श्री तुलछाराम जी बचपन से ही श्री श्याम बाबा के अनन्य भक्त थे। वे सदैव श्री श्याम बाबा के अर्चन-पूजन और चिंतन में लीन रहते थे। एक दिन भक्तशिरोमणि श्री तुलछाराम जी जब श्री श्याम प्रभु की भक्ति में डूबे हुए थे तब उन्हें खाटू जाकर श्री श्याम बाबा के दर्शन करने और निशान (ध्वजा) अर्पित करने की प्रेरणा हुई। तब विक्रम सम्वत 1705 (सन् 1648 ) में श्री तुलछाराम जी प्रथम बार सांठावास ग्राम से खाटू के लिए निशान-यात्रा लेकर चले। खाटू पहुँच कर श्री तुलछाराम जी ने श्री श्याम बाबा के दर्शन-वंदन करने के उपरान्त निशान अर्पित किया। परन्तु तत्कालीन राजा के द्वारा इस यात्रा को निषेध किये जाने के कारण श्याम-भक्त श्री तुलछाराम जी सांठावास ग्राम छोड़कर डूमरा ग्राम आ गए और प्रतिवर्ष इस निशान-यात्रा को जारी रखा।
श्री तुलछाराम जी के सुपुत्र श्री हेमाराम जी ने श्याम-भक्ति और निशान यात्रा की इस पुण्य परंपरा का निर्वहन किया और अगली पीढ़ी में उनके सुपुत्र श्री सेवाराम जी ने इस भक्तिमयी-परंपरा को धारण किया। विक्रम सम्वत 1785 (सन् 1728 लगभग ) में श्री सेवाराम जी डूमरा ग्राम से सूरजगढ़ आकर बस गए। श्री सेवाराम जी को श्री श्याम बाबा की कृपा से चार पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। उनके चारों पुत्रों के नाम क्रमशः श्री नरसाराम जी, श्री श्यामराम जी, श्री लालाराम जी और श्री रतुराम जी थे। सबसे छोटे पुत्र श्री रतुराम जी आयु में छोटे होते हुए भक्ति में सदैव अग्रज रहे और अपने पूर्वजों की इस महान परंपरा को धारण कर इन्दौरिया परिवार के गौरव पुरुष के रूप में स्थापित हुए। श्री रतुराम जी के सुपुत्र श्री किसनाराम जी और उनके पश्चात् श्री किसनाराम जी के सुपुत्र श्री गोवर्धनदास जी ने इस भक्ति-लता का पोषण किया। श्री गोवर्धनदास जी श्री श्याम बाबा के अनन्य भक्त हुए। श्री गोवर्धनदास जी के दो प्रमुख शिष्य हुए,भक्त श्री मंगलाराम जी “अहिर" और श्री रामकृष्ण जी शर्मा वास वाले। श्री गोवर्धनदास जी के मार्गदर्शन में श्री शिवलाल जी सैनी ने निशानधारी के रूप में सेवा दी। इस प्रकार श्री तुलछाराम जी इंदौरिया से शुरू हुई निशान यात्रा की यह अद्वितीय पुण्य परंपरा आज भी इन्दौरिया परिवार में अक्षुण्ण बनी हुई है।
भक्तशिरोमणि श्री तुलछाराम जी इंदौरिया का वंश-वृक्ष इस प्रकार है:-
गोवर्धन दास जी के सुपुत्रों में : रामेश्वरलाल जी, संवारमल जी, रामकुंवार जी भक्त हुए। (श्री रामकुंवार जी के सुपुत्र श्री भागीरथ प्रसाद जी, श्री गोपीराम जी, श्री लीलाधर जी और रामेश्वरलाल जी के सुपुत्र श्री श्योराम जी, हरिराम जी, श्री शंकरलाल जी हुए) श्री संत कुमार, श्री इन्द्र कुमार और श्री हरिराम जी के सुपुत्र श्री बावुलाल, श्री राजकुमार और श्री शंकर लाल जी के सुपुत्र श्री कुरड़ाराम, श्री गिरधारी लाल, श्री महेन्द्र, श्री सज्जन, श्री गोपाल, श्री पवन, श्री सुरेश और भागीरथमल जी के सुपुत्र श्री हजारीलाल, श्री ओमप्रकाश, श्री रुकमानन्द, श्री परमेश्वरालाल, और श्री गोपीराम जी के सुपुत्र श्री सत्यनारायण, श्री जयराम श्री विजय कुमार और श्री लीलाधर जी के सुपुत्र दीपक कुमार, रवि कुमार हुए। इस परिवार पर बाबा की असीम कृपा है। बाबा के भक्तों की भक्ति से खुश होकर यह स्वर्ग समान धाम "श्री श्याम दरवार" का निर्माण अत्यन्त अल्प समय में करवाया। बाबा के इस दरवार में भक्त श्री हरिराम जी, श्री बालाराम जी, श्री प्रभु जी, श्री जुगल किशोर जी, श्री कुरड़ाराम जी, श्री ओमप्रकाश जी, श्री नवरंग लाल जी, श्री हजारी लाल जी तथा 'श्री श्याम दरबार' के स्वयं सेवी कार्यकर्ताओं ने अपना यथा संभव योगदान दिया।
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संग्रहकर्त्ता
समस्त इन्दौरिया परिवार
श्यामलिन श्री तुलछाराम जी इंदौरिया का जीवन काल :-इंदौरिया परिवार की प्रथम पीढ़ी जो निशान संघ की सेवा का माद्यम बनी ! भगत का भगवान से हुआ मिलन, तुलछारामजी को हुवा आभाष बाबा का निशान,स्वपन में ही बनाया निशान (धर्म ध्वज) और शुरु हुई एक धर्मयात्रा की | पीढ़ी दर पीढ़ी चली, इसलिए कहलाई परंपरा।
धर्म ध्वजा(निशान) बनवाट : - 13 Feet Height, 11Meter Doori
वर्तमान निशान:-
वर्तमान समय में निशान भोजराम की ढाणी से श्री विष्णु जी सैनी 20 वर्ष से भक्त श्री हजारी लाल जी के सानिध्य में निरतंर बाबा का निशान लेकर चल रहे हैं बाबा की उन पर बहुत कृपा हैं ।
सूरजगढ़ के निशान (ध्वजा) की महिमा है भारी :-
सूरजगढ़ निशान यात्रा सर्वप्रथम 1705 ईस्वी मैं भगत श्री तुलसाराम जी इंदौरिया ने प्रारंभ की उन्होंने ग्राम सांठावास खंडेला से खाटू धाम मंदिर में निशान चढ़ाये तथा उसी परंपरा को उनके वंशज 200 वर्ष पूर्व सूरजगढ़ में बस गए जो खाटू से लगभग 180 किलोमीटर दूर है अब 2024 में 376 वां निशान खाटू शिखर पर चढ़ाया जाएगा
निशान की विशेषताः सूरजगढ़ निशान पूरी दुनिया में एक अलग विशेषता रखता है यह सफेद रंग का है, जिसके बीच में श्याम बाबा हाथों में तीन बाण लेके लीले घोड़े पर बैठे हैं तथा सूरज चांद सितारे अपनी चमक बिखेरे हैं और पास में देसी गाय माता अपने बछड़े के साथ विराजमान हैं और निशान के शीर्ष पर मोर पंख निशान की शोभा बढ़ाते हैं ।
सूरजगढ़ निशान का एक अलग ही नजारा होता है जोकि पूरी दुनिया में विख्यात है । सूरजगढ़ निशान के तेज के आगे सूरज भी फीका पड़ जाता है । निशान की ऊंचाई 13फीट हैं ।
श्री श्याम दरबार सूरजगढ़ धाम में सूरजगढ़ निशान की स्थापना फागुन सुदी एकम को ठीक 11:15 बजे होती है, एकम से षष्ठी तक निशान की 11 महा आरतियां होती हैं जिसमें हजारों की संख्या में भक्तगण दर्शन करने के लिए आते हैं ।
फागुन सुदी षष्ठी को निशान ठीक 10:15 बजे रवाना होता है निशान के आगे आगे हनुमान जी महाराज की ध्वजा सभी भक्तों को आशीर्वाद देते हुए चलती है !
पदयात्रा का पहला दिन :
निशान यात्रा का प्रारंभ सुबह 10:15 पर श्याम दरबार सूरजगढ़ से होता है जिसमें सबसे आगे हनुमान जी की ध्वजा होती है । जिसके आगे सभी माताएं बहने नंगे पांव सिगड़ी (जलती हुई अखंड ज्योत) लेकर चलती हैं और निशान के साथ सभी भक्तगण हाथ में मोर पंख लेके आशीर्वाद देते हुए चलते हैं ।
प्रथम दिन का यह है अलौकिक नजारा देखने आस-पास के गांव के ही नहीं अपितु हजारों श्याम प्रेमी दूर दूर से चलकर हर्ष और उल्लास से उमड़ जाते हैं ।पहले दिन की यात्रा का समापन गांव सुलताना में होता है ।
अगले दिन सुबह 5:00 बजे वापस से यात्रा शुरू होती है और सुबह 8:00 बजे चनाना पहुंचती है जहां सभी श्याम प्रेमी अल्पाहार करते हैं ठीक 2 घंटे के विराम के बाद यात्रा वापस प्रारंभ होती है और गांव भाटीवाड़ पहुंचती है । इसके इसके बाद काटली नदी (नंदी) का नजारा बहुती प्रिय होता है, यह वह जगह है जहां पर सभी श्याम प्रेमियों को मुंह मांगा वरदान मिलता है । रात को लगभग 7:30 बजे यात्रा गुढ़ागौड़जी पहुंचती है, सूरजगढ़ निशान की पदयात्रा का यह दूसरा पड़ाव होता है यहां पर सभी प्रेमी रात्रि का भोजन करके विश्राम करते हैं । तीसरे दिन भी उसी प्रकार सुबह 4:15 बजे श्याम बाबा की ज्योत जलाकर आरती की जाती है और 5:00 बजे यात्रा प्रारंभ होती है और वीर हनुमान के लिए रवाना होती है, वीर हनुमान में हनुमान जी महाराज का बहुत ही सुंदर मंदिर है जहां पर धोक लगाने से सभी भक्तों की प्रार्थना बालाजी महाराज पूरी करते हैं ।
वीर हनुमान के बाद का पड़ाव उदयपुरवाटी होता है जहां पर सभी पदयात्री दोपहर का भोजन करते हैं और थोड़ी देर के विश्राम के बाद यात्रा पुनः प्रारंभ होती है ।
उदयपुरवाटी की घाटी का नजारा मन को लुभाने वाला होता है, इस घाटी में जो भी सूरजगढ़ निशान के नीचे धोक लगाता है उसके सारे पाप कष्ट दुख दरिद्र मिट जाते हैं और श्याम बाबा उसे धन धान्य से परिपूर्ण करते हैं रात्रि 8:00 बजे सूरजगढ़ निशान पदयात्रा गांव गुरारा पहुंचती है ।रात्रि का खाना पीना कर सभी श्याम प्रेमी विश्राम करते हैं ।
पदयात्रा का अंतिम दिन सुबह 5:00 बजे शुरू होता है और सुबह लगभग 7:30 बजे दिन का का पहला पड़ाव होता है जो कि गांव बामनवास में होता है सुबह का अल्पाहार कर के सभी श्याम प्रेमी ठीक 1 से 2 घंटे बाद वापस रवाना होते हैं और मंढा में करीब 1:00 बजे पहुंचते हैं जहां पर दोपहर का भोजन करते हैं ।
शाम को करीब 4:00 बजे के लगभग पदयात्रा प्रारंभ होती है 4:00 बजे के बाद का यह नजारा देखने लायक होता है जिसमें सभी श्याम प्रेमी पदयात्री नाचते गाते हुए श्याम बाबा कोरे जाते हुए यात्रा करते हैं जगह जगह है श्याम प्रेमियों के नाश्ते पानी का इंतजाम अलग-अलग जगह से आए श्याम प्रेमी द्वारा किया जाता है और सभी पद यात्रियों का मान-सम्मान यह सभी श्याम प्रेमी करते हैं शाम को लगभग 6:30 बजे पदयात्रा कोसी टीबे पर पहुंचती है जहां पर श्याम प्रेमी द्वारा निशान का भव्य स्वागत किया जाता है इस जगह श्याम बाबा और बालाजी महाराज को धोक लगाकर पदयात्री धन्य हो जाते हैं थोड़ी ही दूर पर धर्मशाला है जहां पर पद यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था होती है ।
शब्दकोश : -
निशान : (धर्म ध्वजा)!
निशान स्थापना : निशान आरती की शुरुआत
निशान अर्पण : प्रभु को निशान अर्पित
सूरजगढ़ का निशान, खाटूश्याम मंदिर के शिखर पर चढ़ने वाला एक विशेष निशान है, जिसकी परंपरा सदियों से चली आ रही है और यह पूरे देश में प्रसिद्ध है.
मुख्य बातें:
खाटूश्याम मंदिर से संबंध:
सूरजगढ़ का निशान खाटूश्याम मंदिर के शिखर पर चढ़ने वाला एक विशिष्ट निशान है, जो फागुन शुक्ल छठ व सप्तमी को सूरजगढ़ से रवाना होकर द्वादशी को मंदिर के शिखर पर चढ़ाया जाता है.
महिलाओं की भागीदारी:
इस निशान यात्रा में महिलाएं अपनी मन्नत पूरी होने पर बाबा श्याम को सिगड़ी अर्पित करती हैं और सिर पर सिगड़ी रखकर पदयात्रा करती हैं.
मान्यता:
सूरजगढ़ के निशान की मान्यता है कि इस निशान के आगे-आगे महिलाएं अपनी मन्नत साथ लेकर चलती हैं और बाबा श्याम से जो भी मांगती हैं, वह उन्हें मिलता है.
यात्रा:
महिलाएं निशान यात्रा में 152 किलोमीटर तक नाचते-गाते चलती हैं, और सिगड़ी बाबा के दरबार में अर्पित की जाती है.
विश्व प्रसिद्ध:
सूरजगढ़ के निशान के दर्शन और पदयात्रा में शामिल होने के लिए कोलकाता, असम, चेन्नई, नेपाल, काठमांडू और दुनिया भर से श्याम भक्त आते हैं.
इतिहास:
सूरजगढ़ के निशान की परंपरा सदियों से चली आ रही है और यह खाटूश्याम मंदिर की शान है.